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हर किसी के लिए एक दलाल चुनना

हर किसी के लिए एक दलाल चुनना

ब्लॉकचेन लेनदेन अगली बड़ी तकनीकी क्रांति

किसी आम नागरिक के मन में शायद 'ब्लॉकचेन' शब्द से नकाबपोश व्यक्तियों की छवि बनती होगी जो दलाल पथ के अंधेरे कोनों में एक दूसरे के कान में कुछ फुसफुसाते होंगे और कानून तथा प्रवर्तन अधिकारियों से बचते फिरते हुए अवैध मौद्रिक लेनदेन करके अपने लिए पैसे बनाते होंगे।

ब्लॉकचेन तकनीक की सच्चाई इससे एकदम उलट है। यह दुनिया भर में लेनदेन की लागत को बहुत कम करने वाली तकनीक है। इसमें न तो महंगे दलालों, बैंकरों और अधिवक्ताओं की आवश्यकता है और न ही अन्य लोगों की जो भारी भरकम शुल्क वसूलते हैं। उदाहरण के लिए एक साधारण शेयर संबंधी लेनदेन को एक सेकंड से भी कम समय में निपटाया जा सकता है। हर किसी के लिए एक दलाल चुनना इस प्रक्रिया में प्राय: कोई मानव हस्तक्षेप भी नहीं होता है। निस्तारण यानी शेयर के स्वामित्व के हस्तांतरण में अभी एक सप्ताह का समय लग सकता है। ब्लॉकचेन को अपनाने से यह काम तत्काल हो सकेगा।

यह संयोग नहीं है कि पहला ब्लॉकचेन यानी बिटकॉइन सन 2008 के वित्तीय संकट के तुरंत बाद आम जनमानस के सामने आया। यह वह समय था जब मीडिया और आम जनता के बीच स्थापित वित्तीय संस्थानों और उपायों को लेकर गहरी नाराजगी थी। दस वर्ष बाद स्थापित वित्तीय संस्थानों की किस्मत में आ रहा उतार-चढ़ाव शायद जवाबदेह और गहराई से विचार करने वाले लोगों को ब्लॉकचेन को गंभीरता से लेने के लिए प्रेरित कर रहा है।

मेरा मानना है कि यह बात दुखद है कि बिटकॉइन, ब्लॉकचेन तकनीक का वह पहला उत्पाद है जिसने लोगों का ध्यान खींचा। अगर औषधि और उर्वरक क्षेत्र के बजाय गैर पुनर्चक्रीय प्लास्टिक रासायनिक तकनीक का पहला सुर्खियों में आने वाला उत्पाद होता तो सिंथेटिक केमिस्ट्री का क्या होता?

आर्थिक और वित्तीय जगत के विद्वान भी ब्लॉकचेन पद्धति के सोच को लेकर विचलित हैं: एक लेनदेन पूरा होने के बाद इसे एक नेटवर्क के जरिये भेजा जाता हैं जहां दुनिया भर के कंप्यूटर आपस में जुड़े हुए हैं। ये कंप्यूटर अल्गोरिदम का इस्तेमाल करते हैं, लेनदेन की वैधता सुनिश्चित करते हैं और ऐसे वैध लेनदेन को ब्लॉक में एकत्रित करके आगे बढ़ाया जाता है।

आप विस्मित हो सकते हैं कि इस प्रक्रिया में लेनदेन को वैध ठहराने के लिए किसी अधिवक्ता या बैंकर जैसे विशेषज्ञ की जरूरत नहीं पड़ती? केवल कुछ लोग इसे मंजूरी देते हैं और अल्गोरिदम इसकी वैधता स्थापित करता है?

यहां एक मिनट के लिए रुकिए और विशेषों बनाम आम आदमी के विचारों के बारे में अपनी मान्यताओं का परीक्षण कीजिए। अगर कोई ऐसा प्रस्ताव रखता है कि जिस तरह लोकसभा चुनाव के जरिये सांसद चुने जाते हैं और फिर वे हमारा प्रधानमंत्री चुनते हैं, उसी तरह इन चुनावों में मतदान का अधिकार भी केवल कॉलेज डिग्री रखने वाले या एक खास अर्हता रखने वालों को हो तो इस विचार पर नाराजगी की कल्पना की जा सकती है।

हममें से जो लोग आजादी के बाद पैदा हुए हैं उनके लिए ऐसे चुनावों की कल्पना करना मुश्किल है जहां देश के हर नागरिक को अपना नेता चुनने का अधिकार न हो।

जब 18वीं सदी में ब्रिटिश संसद में प्रतिनिधि भेजने के लिए मतदान की शुरुआत हुई तो इंगलैंड और वेल्स में कुल 2.14 लाख लोग ही मतदान की अर्हता रखते थे। यह तादाद कुल आबादी के 3 फीसदी से भी कम थी। ब्रिटेन ने सासंद चुनने के लिए मतदान की प्रक्रिया इसलिए शुरू की ताकि 19वीं सदी में बाकी के यूरोप में बनने वाली स्थिति से बच सके। यानी यह सुधार क्रांति के खतरे को देखते हुए शुरू किया गया। विद्वान इस बात पर सहमत होंगे कि मतदान के अधिकार ने 20वीं सदी में ब्रिटेन की राजनीतिक स्थिरता में काफी योगदान किया।

तब से हम सभी खासतौर पर सन 1951 के बाद भारत में रहने वाले लोगों ने यही सीखा कि किसे चुना जाना चाहिए और किसे नहीं इसे लेकर तथाकथित आम जनता और विशेषज्ञों के नजरिये में कोई खास फर्क नहीं है। ब्लॉकचेन तथा उससे संबंधित तकनीकों को संदेह की दृष्टि से देखे जाने की एक वजह इसकी बुनियाद में छिपी है। 30 अक्टूबर, 2008 को एक व्यक्ति जिसने अपना नाम सातोषी नाकामोतो बताया, उसने एक श्वेत पत्र जारी करके बिटकॉइन नामक डिजिटल मुद्रा के बारे में जानकारी दी। उसने कहा कि यह इलेक्ट्रॉनिक नकदी सीधे एक पक्ष से दूसरे पक्ष को भेजी जा सकेगी और इसमें किसी वित्तीय संस्थान की आवश्यकता नहीं। बिटकॉइन नेटवर्क की शुरुआत 3 जनवरी, 2009 को हुई और प्रत्येक बिटकॉइन की कीमत 0.0008 डॉलर रखी गई और अब इसका बाजार मूल्य 60,000 डॉलर या उससे अधिक है।

इसके इर्दगिर्द रहस्य उस समय गहरा होने लगा जब दो वर्ष बाद 23 अप्रैल, 2011 को नाकामोतो ने बिटकॉइन के अपने साथी को एक विदाई मेल लिखकर कहा कि अब वह दूसरी चीजों की ओर आगे बढ़ रहे हैं। उन्होंने अपने मेल में यह आश्वस्ति भी दी कि बिटकॉइन का भविष्य अच्छे हाथों में है। तब से उनके बारे में कोई जानकारी नहीं है और इससे ब्लॉकचेन को लेकर संदेह और बढ़े हैं। ब्लॉकचेन एक डिजिटल बहीखाता है जो विभिन्न पक्षों को यह इजाजत देता है कि वे बिना किसी केंद्रीय प्राधिकार को विश्वसनीय बिचौलिया बनाए लेनदेन करें। इस बहीखाते में लेनदेन को ब्लॉक्स में एकत्रित किया जाता है जो एक दूसरे से इस तरह बंधे होते हैं कि इसका एक गणितीय इतिहास तैयार होता है। यह कोई नई तकनीक नहीं है बल्कि यह मौजूद तकनीक के इस्तेमाल की एक नवाचारी व्यवस्था है।

वल्र्ड वाइड वेब और ईमेल को विश्व स्तर पर इसलिए अपनाया जा सका क्योंकि उसके साथ टीसीपी/आईपी जैसी तकनीक जुड़ी थी। टीसीपी/आईपी के निर्माण के पहले इलेक्ट्रॉनिक संचार व्यवस्था को दुनिया भर में प्रसारित कर पाना संभव नहीं था। जिस तरह टीसीपी/आईपी ने विश्व स्तर पर व्यक्तिगत संदेश को संभव बनाया उसी तरह बिटकॉइन द्विपक्षीय वित्तीय लेनदेन को संभव बनाता है। ब्लॉकचेन का विकास और रखरखाव भी टीसीपी/आईपी की तरह ही खुला, वितरित और साझा है। दुनिया भर में स्वयंसेवकों की एक टीम ब्लॉकचेन के मूल सॉफ्टवेयर की उसी प्रकार देखरेख और रखरखाव करती है जैसे टीसीपी आईपी तथा अन्य ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर का किया जाता है।

ब्लॉक चेन से स्मार्ट कॉन्ट्रैक्ट जैसी क्रांति आएगी। ठीक टीसीपी/आईपी ईमेल और इंस्टैंट मेसेजिंग की तरह यह किन्हीं दो पक्षों के बीच विश्वसनीय लेनदेन और समझौतों की इजाजत देगा और इस दौरान किसी केंद्रीय प्राधिकार, विधिक व्यवस्था या बाहरी प्रवर्तन प्रणाली की भूमिका न होगी। कल्पना कीजिए कि इससे हमारी अर्थव्यवस्था पर क्या असर होगा।

हिन्दी, इंग्लिश और उर्दू में उस्ताद के अर्थ देखिए

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शब्द 'उस्ताद' फ़ारसी से उर्दू में आया। इसका सफ़र ज़रतुश्त धर्म की किताब 'अवेस्ता' से शुरू हुआ जो प्राचीन ईरानी भाषा में थी और उसके समझने वाले भी बहुत कम थे। 'अवेस्ता' के जानने वाले को 'अवेस्ता वैद' कहा जाता था। शब्द 'वैद' आज भी 'हकीम' या 'ज्ञानी' के लिए इस्तेमाल होता है। समय के साथ साथ यह शब्द पहले 'अवेस्ता विद' हुआ फिर 'उस्ताद' हो गया। शुरू में यह शब्द धार्मिक ग्रंथों के समझने समझाने वालों के लिए ही इस्तेमाल होता था, बाद में यह हर तरह की शिक्षा देने वालों के लिए आम हो गया और फिर हर कला के विशेषज्ञ को भी उस्ताद कहा जाने लगा। यह शब्द हिंदुस्तानी क्लासिकी संगीत के बड़े कलाकारों के नाम का हिस्सा ही बन गया। अब आम बोलचाल में यह शब्द नित नए ढंग से मिलता है। चालाकी करना 'उस्तादी दिखाना' बन गया है। बेतकल्लुफी से यार दोस्त भी एक दूसरे को उस्ताद कह कर संबोधित करते हैं। हिंदुस्तानी फ़िल्मों में भी भांति भांति के अच्छे-बुरे पात्र 'उस्ताद' के रूप में नज़र आते हैं और 'उस्तादों के उस्ताद', 'दो उस्ताद' और 'उस्तादी उस्ताद की' जैसे नामों वाली फ़िल्में भी मिल जाती हैं। शागिर्द हैं हम मीर से उस्ताद के रासिख़ उस्तादों का उस्ताद है उस्ताद हमारा

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राजस्थान में इस फर्ज़ीवाड़े ने पार कर डाली हदें, खुलासा हुआ तो फटी की फटी रह गईं हर किसी की आंखें

rajasthan malpani center

राजधानी के मालपाणी अस्पताल में अनपढ़ ग्रामीणों पर धोखे से दवा के प्रयोग के मामले में एक और खुलासा हुआ है। ग्लैनमार्क कंपनी द्वारा विकसित जिस दवा का अस्पताल में प्रयोग किया जा रहा था, वह 40 से 70 वर्ष की उम्र के रोगियोंं के लिए थी। मगर यहां यह नौजवानों को दे दी गई। चौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि यह दवा घुटने व कुल्हे की हड्डियों के दर्द से जुड़े रोग ऑस्टियोऑर्थराइटिस के उपचार के लिए तैयार की गई है, जबकि जिन्हें ट्रायल के लिए चुना गया वे कभी भी इस रोग से पीडि़त ही नहीं रहे।

'राजस्थान पत्रिका' ने चूरू जिले की बीदासर तहसील के डेगारिया गांव से लाए गए लोगों और उनके परिजनों से बात की। उन्होंने साफ कहा कि उन्हें कभी जोड़ों में दर्द, हड्डियों की बीमारी और ऑस्टियोऑर्थराइटिस तरह की बीमारी नहीं हुई। कालूराम (23), ओमाराम (23), सोहनलाल (18) और सांवरलाल (25) ने तो चौंकते हुए बताया कि किस तरह की बीमारी और किस तरह का ट्रायल, उन्हें तो दिहाड़ी भुगतान का कहकर बुलाया गया था।

यहां के थे ग्रामीण : चूरू जिले की बीदासर तहसील के डिगारिया गांव के 21 लोग व अलीपुर भरतपुर के 7 लोग।

शर्त का उल्लंघन
केंद्र सरकार की क्लिनिकल ट्रायल रजिस्ट्री द्वारा ग्लैनमार्क कंपनी के इस ट्रायल को अनुमति प्रदान की गई है। पत्रिका पड़ताल में साफ हुआ है कि अनुमति की पहली शर्त है कि यह ट्रायल सिर्फ 40 से 70 साल के ऑस्टियोऑर्थराइटिस रोगियों पर ही किया जाना है। मालपाणी अस्पताल में इसका सीधे तौर पर उल्लंघन हो रहा था।

डॉ. गुप्ता के नाम ट्रायल
ग्लैनमार्क कंपनी का यह ट्रायल देश में 38 अस्पतालों में चल रहा है। मालपाणी मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. राजीव गुप्ता को कंपनी यह ट्रायल करने के लिए चयनित किया है।

दलाल किए तैनात
मालूम चला है कि मालपाणी अस्पताल में ट्रायल के रोगियों के लक्ष्य पूरे करने के लिए दलाल तैनात किए गए हैं। इनके जरिए दूर दराज के गांवों से लोगों को यहां लाया जा रहा था।

'ट्रायल मैं कर रहा हूं लेकिन लोगों को कौन लाया मालूम नहीं'
(ट्रायल करने वाले डॉ.राजीव गुप्ता से सीधी बात)
पत्रिका : मालपाणी अस्पताल में जो ट्रायल चल रहा है, आपके नाम से पंजीकृत है?
डॉ. गुप्ता : हां, बिल्कुल मेरे नाम से ही पंजीकृत है।
पत्रिका : ट्रायल के लिए ऐसे लोग कैसे लाए गए, जिन्हें बीमारी ही नहीं ?
डॉ. गुप्ता : मुझे खुद को नहीं पता कि इन्हें किस तरह मालपाणी अस्पताल में लाया गया।
पत्रिका : गांव से मरीजों को लाया गया तो वहां डॉक्टर जाकर शिविर लगाते और चयनित कर लाया जाता, ऐसे कैसे किसी के भी जरिए मरीजों को लाया गया ?
डॉ. गुप्ता : मैं कह रहा हूं ना कि इन्हें किस तरह लाया गया और क्यों लाया गया, मुझे नहीं पता, मेने तो खुद आज अखबारों में देखा तो मुझे इस मामले का पता लगा


चिकित्सा विभाग ने रिकॉर्ड किया सीज
इधर, यह पूरा मामला सामने आने के बाद मालपाणी अस्पताल में चल रहे इस ट्रॉयल की जांच शुरू कर दी है। अस्पताल प्रशासन के अतिरिक्त निदेशक डॉ.रविप्रकाश सहित अन्य अधिकारी शनिवार दोपहर अस्पताल पहुंचे और यहां के रिकॉर्ड की जांच की। साथ ही यहां मौजूद डॉक्टरों व अन्य स्टाफ के बयान भी लिए। डॉ. रविप्रकाश ने बताया कि पंजीकृत डॉ. राजीव गुप्ता व संबंधित मरीज वहां नहीं मिले। अस्पताल में मौजूद ट्रॉयल से संबंधित रिकॉर्ड को सीज कर दिया गया है।

Varun Dhawan की दुल्हन बनने के लिए Natasha Dalal ने पहना सबसे हटकर लहंगा, ऑफ व्हाइट लहंगे में लूट ली लाइमलाइट

Varun Dhawan-Natasha Dalal complete bridal look, check out here: वरुण धवन की दुल्हन बनने के लिए फैशन डिजायनर नताशा दलाल ने सबसे हटकर अपना ब्राइडल लुक रखा। जिसकी तस्वीरें आपको रोमांचक कर देंगी। देखिए यहां

  • By Shivani Bansal
  • Published: January 25 2021, 13:30 PM IST

नताशा दलाल और वरुण धवन का ब्राइडल लुक था सबसे जुदा

बॉलीवुड स्टार वरुण धवन (Varun Dhawan) की ग्रैंड वेडिंग बीते दिन अलीबाग के खूबसूरत लोकेशन पर की गई। यहां देर रात वरुण धवन और नताशा दलाल (Natasha Dalal) ने शादी के बाद मीडिया को अपनी झलक दिखाई। शादी की तैयारियों के बीच वरुण धवन और नताशा दलाल के ब्राइडल लुक पर हर किसी की नजर थी। वरुण धवन की दुल्हन बनने के लिए नताशा दलाल ने सबसे हटकर लहंगा पहना था। नताशा दलाल ने वरुण धवन की दुल्हन बनने के लिए ऑफ व्हाइट लहंगे को चुना। आइए इस रिपोर्ट में देखते हैं नताशा दलाल और वरुण धवन का पूरा ब्राइडल लुक।

नताशा दलाल ने पहना ऑफ व्हाइट लहंगा

नताशा दलाल ने पहना ऑफ व्हाइट लहंगा

नताशा दलाल खुद एक फैशन डिजायनर हैं। वो ब्राइडल लुक्स के लिए ही जानी जाती हैं। ऐसे में अपनी शादी पर तो उन्हें सबसे अलग दिखना ही था। मगर सबको चौंकाते हुए नताशा दलाल ने अपनी शादी पर ऑफ व्हाइट गोल्डन बेस्ड वाला लहंगा चुना। जिसे देखकर सब हैरान हो गए। Also Read - इस बार अपनी गर्लफ्रेंड नताशा दलाल के साथ हाथों में हाथ डाले नज़र नहीं आये वरुण धवन- देखें तस्वीरें!

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बैंकों की मनमानी, उद्योग विभाग ने जिन्हें रोजगार के लिए चुना उन्हें लोन नहीं दे रहीं बैंक

- मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना में चयनित होने वाले बेरोजगारों का मामला। श्योपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार स्थापित कराने के लिए सरकार द्वारा मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना चलाई जा रही है, लेकिन बैंकों की मनमानी की वजह से इस योजना के तहत चिन्हित होने वाले युवाओं को भी लोन नहीं मिल पा रहा है। जिससे वह चाहकर भी अ

बैंकों की मनमानी, उद्योग विभाग ने जिन्हें रोजगार के लिए चुना उन्हें लोन नहीं दे रहीं बैंक

- मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना में चयनित होने वाले बेरोजगारों का मामला।

श्योपुर। नईदुनिया प्रतिनिधि

बेरोजगार युवाओं को स्वरोजगार स्थापित कराने के लिए सरकार द्वारा मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना चलाई जा रही है, लेकिन बैंकों की मनमानी की वजह से इस योजना के तहत चिन्हित होने वाले युवाओं को भी लोन नहीं मिल पा रहा है। जिससे वह चाहकर भी अपना रोजगार नहीं लगा पा रहे है और सरकार की इतनी महत्वपूर्ण योजना को पलीता लग रहा है।

उद्योग विभाग द्वारा मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना में चयनित किए गए ज्यादातर बेरोजगारों को जिले की बैंकें लोन मंजूर नहीं कर रही हैं। ऐसे हालातों में उद्योग विभाग से प्रकरण पास करवाने वाले जिलेभर के सैकडों बेरोजगार बैंकों के चक्कर काटने के बाद थक हारने के बाद अपने घर बैठने को मजबूर हैं। लोन के लिए बैंकों के चक्कर लगाने के बाद लोन पास न होने से परेशान युवा हनुमान पुत्र सम्भू मीणा निवासी जाटखेडा, अमित पाराशर निवासी आनंदनगर कॉलोनी श्योपुर की मानें तो किराना स्टोर और अन्य स्वरोजगार स्थापित करने के लिए उद्योग विभाग द्वारा उनका प्रकरण मंजूर कर बैंकों के लिए भेज दिया था। लेकिन बैंक कर्मियों ने सारी ओपचारिकताएं पूरी करने के बाद भी उन्हे लोन नहीं दिया जा रहा है। इस वजह से वह अपना स्वरोजगार स्थापित नहीं कर पा रहे है और वह बेरोजगारी की मार झेलने को मजबूर है।

बैंकों पर सेटिंग बिना लोन पास नहीं करने का आरोप

मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना द्वारा चयनित किए गए ज्यादातर युवा ऐसे है जो कागजों की सारी खानापूर्ति कर चुके होते है। फिर भी बैंक उन्हे लोन नहीं देते। उन बेरोजगार युवाओं की मानें तो बैंक सिर्फ दलालों, कर्मचारियों से सेटिंग करने वाले या सिफारिश बाले बेरोजगारों के ही लोन पास करते है। बांकी के बेरोजगारों को बैंकों के चक्कर काटने के बाद भी लोन नहीं मिलता है। जिससे वह मु्‌ख्यमंत्री स्वरोजगार योजना में चयनित होने के बाद भी पहले की ही तरह बेरोजगार बने हुए है।

सरकार की योजना का बन रहा मजाक

बेरोजगारों को रोजगार स्थापित करवाए जाने के लिए सरकार द्वारा मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना चलाई जा रही है। इस योजना द्वारा चयनित होने वाले हर बेरोजगार को रोजगार दिलाना सरकार की जिम्मेवारी है। फिर भी हर 100 में से 85 ऐसे प्रकरण सामने आ रहे है जिन्हे सरकार की योजना द्वारा चयनित किए जाने के बाद भी लोन नहीं मिल पा रहा है। जबकि बेरोजगार लोन के लिए बैंकों से लेकर अधिकारियों के यहां चक्कर लगाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड रहे। फिर भी उन्हे लोन नहीं मिल पा रहा। ऐसे हालातों में बेरोजगारों की बेरोजगारी और सरकार की स्वरोजगार योजना का मजाक बन रहा है।

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जनसुनवाई में बढ रही शिकायतें

स्वरोजगार के लिए बैंकों के चक्कर लगाने के बाद भी लोन न मिलने से परेशान बेरोजगार संबंधित अधिकारी से लेकर जिला मुख्यालय पर हर मंगलवार को आयोजित होने वाली जनसुनवाई में भी बैंकों द्वारा लोन न देने की शिकायतें कर चुके है। बेरोजगार अमित पाराशर निवासी आनंदनगर कॉलोनी श्योपुर द्वारा भी बीते मंगलवार को आयोजित हुई जनसुनवाई में कलेक्टर को ज्ञापन देकर एसबीआई बैंक की स्टेशन रोड श्योपुर की शाखा के कर्मचारियों पर लोन के एवज में राशि का 15 प्रतिशत कमीशन मांगने के आरोप लगाकर शिकायत की थी। फिर भी बैंक कर्मचारियों द्वारा बेरोजगार का लोन पास नहीं किया जा रहा है। जिससे वह बेरोजगारी को लेकर परेशान है।

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पलायन करने को मजबूर बेरोजगार

खुद का रोजगार स्थापित करने के लिए लोन पास न होने से परेशान जिले के सैकडों बेरोजगार रोजगार की तलाश में हर साल अपने जिले से पलायन कर दूसरे जिलों या राज्यों के लिए चले जाते है। ऐसा आज कल से नहीं बल्कि वर्षों से होता चला आ रहा है। लेकिन जिले के जिम्मेवार अधिकारी इस पलायन को रोकने और उन्हे खुदका रोजगार स्थापित करवाए जाने के लिए किसी तरह की कोई मदद नहीं कर रहे है।

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स्वरोजगार के लिए किराना स्टोर लगाने के लिए मैंने उद्योग विभाग से लोन पास करवाया था, सेन्ट्रल बैंक श्योपुर में मेरा प्रकरण पहुंचा था, हर किसी के लिए एक दलाल चुनना कई बार बैंक के चक्कर काटे लेकिन लोन नहीं मिला तो अब बेरोजगारी से परेशान हूं, सब जगह शिकायत करली, लेकिन किसी ने भी सुनवाई नहीं की है।

हनुमान मीणा बेरोजगार युवा जाटखेडा श्योपुर

मेरा लोन उद्योग विभाग ने स्वीकृत कर दिया, एसवीआई बैंक की स्टेशन रोड श्योपुर की शाखा के कर्मचारी घर तक पड़ताल करने के लिए भी आए, उसके बाद एक दलाल ने 15 प्रतिशत कमीशन देने के लिए मुझसे कहा, जब मैंने मना कर दिया तो बैंक वालों ने मेरा लोन पास नहीं किया, इसकी शिकायत जनसुनवाई में की है।

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